बिसात- राजनीतिक तीर्थ यात्रा

 23 Jul 2019  578

अजय भट्टाचार्य

करेंट अफेयर्स,(21 जुलाई 2019)-महाराष्ट्र की प्रमुख राजनीतिक (सामाजिक व सांस्कृतिक भी) शक्ति शिवसेना के खेमे से एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री पद की दावेदारी की गूंज उभरी है। सूबे में संगठन की दृष्टि से कमजोर उत्तर महाराष्ट्र से आशीर्वाद यात्रा का पहला चरण शुरू करने वाले युवा सेना अध्यक्ष आदित्य ठाकरे भले अपने मुंह से इच्छा जाहिर न करें लेकिन पार्टी के प्रमुख सलाहकार राज्यसभा सांसद व प्रवक्ता संजय राउत का कहना है कि अब आदित्य ठाकरे को राज्य की कमान संभालनी चाहिये। यह अलग बात है कि राजनीतिक पद न लेने की परंपरा ठाकरे परिवार में लंबे समय से रही है। इसीलिये न तो बाला साहेब और न ही उद्धव ठाकरे ने कोई राजनीतिक पद संभाला।  शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण बनाने वाले बाला साहेब के भतीजे राज ठाकरे ने भी न कभी चुनाव लड़ा और न राजनीतिक पद पर आसीन हुए। संभवत: अब यह परंपरा टूटने वाली है। राउत के मुताबिक यह शिवसेना की मुख्यमंत्री पद पर यात्रा की शुरुआत होगी। वैसे आदित्य ठाकरे ने अपनी रैली में इस यात्रा को तीर्थ यात्रा बताया है। बीते गुरुवार से अपनी जन आशीर्वाद यात्रा शुरू करने वाले आदित्य ने खुद को खुलेआम तौर पर मुख्यमंत्री पद प्रत्याशी बताने का जोखिम उठाने से परहेज किया। परन्तु संजय राउत के भाषण के दौरान शिवसेना का राजनीतिक उद्देश्य स्पष्ट हो गया। आज यानि 22 जुलाई को इस यात्रा का पहला चरण समाप्त होगा। उत्तर महाराष्ट्र का यह क्षेत्र खान्देश कहलाता है और राजनीतिक दृष्टि से शिवसेना इस क्षेत्र में कमजोर नजर आती है। इसलिए आदित्य ठाकरे की इस जन आशीर्वाद यात्रा की शुरुआत इस क्षेत्र से की गई। राजनीतिक पंडित शिवसेना द्वारा बार-बार मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी को एक राजनीतिक पैंतरा मानते हुए कहते हैं कि अगली सरकार में मलाईदार विभागों पर शिवसेना अपनी दावेदारी मजबूत करने के लिए राज्य के मुखिया की गद्दी पर निशाना लगा रही है। दूसरा युति में सीटों के बंटवारे में कुछ ऐसी सीटें भी शिवसेना चाहती है जिन पर कभी उसके विधायक होते थे और 2014 में भाजपा उन सीटों पर सफल हुई थी। इस राजनीतिक तीर्थाटन के अन्य हेतु भी धीरे-धीरे उजागर होंगे। 
 

----लोढा की ताजपोशी का मतलब 
मुंबई भाजपा में हिन्दीभाषी, जैन, मारवाड़ी, उद्योगपति तथा अनुभव को अगर एक साथ देखना हो तो मंगल प्रभात लोढा का नाम सामने आता है। मुंबई भाजपा के अध्यक्ष पद पर उनकी ताजपोशी उनकी इसी विशेषता का नतीजा है। लगातार पांच बार विधायक बनने और भाजपा के विभिन्न पदों पर काम करने का उनका अनुभव निश्चित ही मुंबई में भाजपा की नई इबारत लिखेगा। यह अलग बात है कि पिछले पांच साल से मंत्री बनने के उनके सारे प्रयास विफल रहे हैं। क्योंकि हिन्दीभाषी मंत्री के नाम पर राज के. पुरोहित को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने मंत्री तो बना दिया लेकिन विभाग अभी तक नहीं आवंटित किया। यह ठीक उसी तरह है जैसे कोई अपने बेटे का नाम राजा रख दे लेकिन कहाँ का राजा यह पता ही न चले। पुरोहित के मंत्री बन जाने से एक ही क्षेत्र (दक्षिण मुंबई) से दो मंत्री नहीं बन सकते की दलील देकर लोढा का पत्ता कटता रहा। बहरहाल ताजपोशी होते ही लोढा ने घुसपैठियों और डबल वोटर पर निशाना साधा है। दबक वोटर से उनका मतलब मुंबई में अन्य प्रान्तों से आकर यहाँ भी वोटर बने लोगों से है जिनका नाम उनके मूल प्रान्त की मतदाता सूची में भी शामिल है। अब जबकि बमुश्किल दो महीने दूर चुनाव दहलीज पर खड़े हैं तब यह मुद्दा कितना प्रभावी होगा यह देखने की बात होगी।

 

---जोश में नेताजी 
मुंबई कांग्रेस ने विधान सभा चुनावों की तैयारी के लिए इतना भर किया है कि टिकट के दावेदारों से आवेदन मंगवा/भरवा लिए हैं। लगभग हर विधानसभा क्षेत्र से संभावित उम्मीदवारों ने पार्टी के मुंबई मुख्यालय जाकर आवेदन पत्र भरकर इस मुद्रा में फोटो सेशन कराया जैसे चुनाव आयोग के रिटर्निंग अधिकारी के पास परचा भरा हो। जो आवेदन नही कर पाये वे सोशल मीडिया पर हवाबाजी में लगे हैं। दिंडोशी के नगर सेवक का चुनाव हारे हुए एक नेताजी यही कर रहे हैं। उनके चेले-चपाटे रोज फेसबुक जैसे मंच पर नेताजी की शान में कशीदे काढ़ रहे है ताकि मुंबई कांग्रेस आलाकमान खुद उनके घर तक चलकर आये और कहे कि लो नेताजी चुनाव का टिकट और विधानसभा चुनाव लड़ लो। ऐसा कहीं होता है क्या? यह प्रश्न एक कार्यकर्ता का है। वह कहता है टिकट पाने की जो औपचारिकता होती है उसे पूरा किये बिना किसी को कैसे उम्मीदवारी दी जा सकती है। वैसे 2009 में यह सीट कांग्रेस के लिए जिस नेता ने जीती थी 2014 में चुनाव हारकर वह नेता अब भाजपा में शामिल हो चुका है। इसलिए दिंडोशी के हर कांग्रेसी नेता में जोश उबाल मार रहा है।

 

------कर्नाटक का पेंच 
कर्नाटक में जारी सत्ता संघर्ष में राज्यपाल की घुसपैठ के बावजूद पेंच कायम है। राज्यपाल वजुभाई वाला ने मुख्यमंत्री कुमारास्वामी को विश्वासमत हासिल करने के लिए दो समय-सीमाएं दी थीं। लेकिन मुख्यमंत्री कुमारास्वामी ने विश्वासमत पर सोमवार को फ़ैसला कराने का फ़ैसला लिया है। इस मामले में क़ानूनी बहस यह है कि क्या राज्यपाल को विधायिका के कामकाज में दख़ल देने की शक्तियां प्राप्त हैं? ख़ासतौर पर तब, जब मुख्यमंत्री ने विश्वासमत का सहारा लिया है और मामले पर सोमवार या मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने की संभावना है। कानून के जानकारों का मत है कि मुख्यमंत्री ने विश्वासमत हासिल करने के लिए राज्यपाल द्वारा तय दो समय-सीमाओं का पालन नहीं किया। प्रथम दृष्टया, राज्यपाल के पास सूचना है कि गठबंधन सरकार अपना बहुमत खो चुकी है। वैसे सूचना यह भी है कि राज्यपाल अपनी रिपोर्ट केंद्र को पहले ही भेज चुके हैं। राज्यपाल सोमवार तक इंतज़ार कर सकते हैं, जब विश्वासमत की प्रक्रिया पूरी होनी है। उसके बाद राज्यपाल तय कर सकते हैं कि राष्ट्रपति शासन लगाना है या विधानसभा को निलंबित करना है। इसके उलट कर्नाटक के पूर्व एडवोकेट जनरल रवि वर्मा कुमार का कहना है कि मुख्यमंत्री जब विश्वासमत हासिल करने की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर चुके हैं, ऐसे में राज्यपाल को विधायिका में दख़ल देने का कोई हक़ नहीं है। वे केंद्र सरकार के नामित सदस्य भर हैं। राज्यपाल इस तरह से अपनी राय नहीं दे सकते। केंद्र चाहे तो राष्ट्रपति शासन लगा सकता है या विधानसभा को निलंबित कर सकता है। लेकिन विश्वासमत हासिल करने की प्रक्रिया ही एकमात्र तरीका है जिससे तय होगा कि मुख्यमंत्री ने विश्वास खोया है या नहीं। कांग्रेस और जनता दल सेक्यूलर के 16 सदस्यों द्वारा विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफ़ा देने के बाद उभरे सत्ता के संग्राम का पटाक्षेप क्या होगा यह सोमवार की कार्यवाही पर टिका है।

 

------बंगला बचाने के लिये 
नीरज का एक अर्थ कमल भी होता है। समाजवादी पार्टी के कोटे से फ़िलहाल राज्यसभा सांसद नीरज शेखर ने भाजपा का दामन थाम लिया है। सपा के खेमे से प्रचार किया जा रहा है कि जिस बंगले में नीरज शेखर रहते थे उस बंगले से उनके पिता चंद्रशेखर की यादें जुड़ी हुई थी। 48 साल जिस बंगले में नीरज अपने पिता के साथ रहे उसको भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने खाली करवा दिया। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की कोशिश की  वजह से जो बंगला मिला था उस बंगले को बचाने के लिए उन्हें मजबूर होकर भाजपा में शामिल होना पड़ा ताकि कम से कम इस बंगले को बचाया जा सके।
इसलिए जब नीरज शेखर  ने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफ़ा दिया तभी यह तय हो गया था कि वे जल्द ही भाजपा में शामिल होंगे। नीरज शेखर का राज्यसभा कार्यकाल नवंबर 2020 तक था। सम्भावना है कि नीरज शेखर को 020 में भाजपा उप्र से राज्यसभा में भेज सकती है। यह भी महत्वपूर्ण है कि पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर पर लिखी राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश की पुस्तक “चंद्रशेखर- द लास्ट आइकन ऑफ आइडियोलॉजिकल पॉलिटिक्स” का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विमोचन करेंगे। इससे पहले उनके बेटे नीरज शेखर का भाजपा में शामिल होना जरूरी था। वैसे इस बार लोकसभा चुनाव में नीरज शेखर ने सपा से अपनी  परम्परागत सीट बालिया से टिकट माँगा था  मगर सपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया था। इसके बाद नीरज शेखर कथित तौर पर अखिलेश यादव और पार्टी नेतृत्व से नाराज़ चल रहे थे। पिता चंद्रशेखर की मौत के बाद नीरज शेखर ने पहली बार 2007 में बलिया से चुनाव जीत कर संसद में पहुंचे थे। 2009 के आम चुनावों में भी उन्होंने इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा था। 2014 में भाजपा के प्रत्याशी भरत सिंह ने नीरज शेखर को इस सीट से चुनाव में मात दे दी थी।


पुछल्ला : भले ही कांग्रेस सन्निपाती दौर से गुजर रही हो लेकिन सोनभद्र नरसंहार पीड़ितों तक पहुंचकर प्रियंका गाँधी ने शिथिल पड़ी पार्टी में जान फूंकने की कोशिश जरुर की है। यही वजह है चुनार गेस्ट हाउस में जब उनको गिरफ्तार कर रखा गया, कांग्रेसी कार्यकर्ता सड़कों पर विरोध करते नजर आये।